क्या कलीसिया में स्त्रियाँ प्राचीन के रूप में सेवा करती हैं?

प्रश्न क्या कलीसिया में स्त्रियाँ प्राचीन के रूप में सेवा करती हैं? उत्तर इस प्रश्‍न के ऊपर दो प्राथमिक दृष्टिकोण पाए जाते हैं कि क्या कलीसिया में प्राचीन के रूप में महिलाएँ सेवा कर सकती हैं या नहीं। समतावादी दृष्टिकोण में यह माना जाता है कि जब तक वे 1 तीमुथियुस 3: 1-7 और तीतुस…

प्रश्न

क्या कलीसिया में स्त्रियाँ प्राचीन के रूप में सेवा करती हैं?

उत्तर

इस प्रश्‍न के ऊपर दो प्राथमिक दृष्टिकोण पाए जाते हैं कि क्या कलीसिया में प्राचीन के रूप में महिलाएँ सेवा कर सकती हैं या नहीं। समतावादी दृष्टिकोण में यह माना जाता है कि जब तक वे 1 तीमुथियुस 3: 1-7 और तीतुस 1: 5- 9 में उल्लिखित शर्तों को पूरा करती हैं, तब तक महिलाएँ प्राचीन के रूप में सेवा कर सकती हैं। पूरकतावादी दृष्टिकोण इसके विपरीत दृष्टिकोण की पुष्टि करता है और कहता है कि कलीसिया में प्राचीन के रूप में महिलाओं को सेवा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

आइए, हम 1 तीमिथुयस 3:1-7 को देखें: “यह बात सत्य है, कि जो अध्यक्ष होना चाहता है, वह भले काम की इच्छा करता है। यह आवश्यक है कि अध्यक्ष निर्दोष, और एक ही पत्नी का पति, संयमी, सुशील, सभ्य, अतिथि-सत्कार करनेवाला, और सिखाने में निपुण हो। वह पियक्कड़ या मारपीट करनेवाला न हो; वरन् कोमल हो, और न वह झगड़ालु, और न धन का लोभी हो। अपने घर का अच्छा प्रबन्ध करता हो, और बाल-बच्चों को सारी गम्भीरता से अधीन रखता हो। जब कोई अपने घर ही का प्रबन्ध करना न जानता हो, तो वह परमेश्‍वर की कलीसिया की रखवाली कैसे करेगा। फिर यह कि वह नया चेला न हो, ऐसा न हो कि वह अभिमान करके शैतान का सा दण्ड पाए। और बाहरवालों में भी उसका सुनाम हो, ऐसा न हो कि वह निन्दित होकर शैतान के फन्दे में फँस जाए।” (बी. एस. आई. हिन्दी बाइबल)

इस सन्दर्भ में लिखी हुई पहली बात यह ध्यान देना है कि इसमें कितनी बार पुरूषवाचक शब्द (“वह” और “उसका”) आया है। सर्वनाम वह, उसका, और उसके 1 तीमुथियुस 3:1-7 में 10 बार प्रगट होता है। इस सन्दर्भ का सरसरी पठन् मात्र ही एक औसत व्यक्ति को इस निष्कर्ष की ओर ले चलेगा कि एक प्राचीन/अध्यक्ष की भूमिका को अवश्य ही एक पुरूष के द्वारा ही पूरा किया जाना चाहिए। वाक्यांश “एक ही पत्नी का पति” भी यही संकेत देता है कि एक प्राचीन का पद पुरूषों के द्वारा ही भरा जाना चाहिए/पुरूषों के द्वारा ही पूरा किए जाने के आशय से निर्मित किया गया है। इसी बात को तीतुस 1:5-9 के इस जैसे ही समान सन्दर्भ में दुहराया गया है।

ये सन्दर्भ जो एक प्राचीन/अध्यक्ष की योग्यताओं और उत्तरदायित्वों का वर्णन करते हैं, स्त्रियों को प्राचीनों के रूप में सेवा करने के लिए किसी तरह संकेत नहीं देते हैं। सच्ताई तो यह है कि पुरूष वाचक सर्वनामों और शब्दावलियों का सुसंगत तरीके से उपयोग बड़ी दृढ़ता के साथ इस पद को केवल पुरूषों के लिए निर्धारित होने के लिए तर्क प्रस्तुत करता है। इस विवाद से सम्बन्धित अन्य विषयों के साथ, प्राचीनों के रूप में सेवा करने के लिए महिलाओं का निषेधीकरण दुराग्रह से प्रेरित होने का विषय नहीं है। किसी भी अर्थ में यह पुरुषों को महिलाओं की तुलना में उत्तम नहीं बनाता है। इसकी अपेक्षा, परमेश्‍वर पुरूषों तक ही प्राचीन के पद को सीमित इसलिए रखता है, क्योंकि इसी तरह से उसने कलीसिया के ढांचे को कार्य करने के लिए निर्मित किया है। धर्मी पुरूषों को कलीसियाई नेतृत्व में, महिलाओं के द्वारा सहायता प्रदान करने वाली महत्वपूर्ण भूमिकाओं को निभाते हुए सेवा करनी चाहिए।

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