क्या यीशु शाकाहारी था? क्या मसीही विश्‍वासी को शाकाहारी होना चाहिए?

प्रश्न क्या यीशु शाकाहारी था? क्या मसीही विश्‍वासी को शाकाहारी होना चाहिए? उत्तर यीशु शाकाहारी नहीं था। बाइबल यीशु को मछली (लूका 24:42-43) और मेम्ना (लूका 22:8-15) खाने को लिपिबद्ध करती है। यीशु ने आश्चर्यजनक रीति से भीड़ को मछली और रोटी से भोजन कराया था, जो यदि वह शाकाहारी होता तो, उसके द्वारा की…

प्रश्न

क्या यीशु शाकाहारी था? क्या मसीही विश्‍वासी को शाकाहारी होना चाहिए?

उत्तर

यीशु शाकाहारी नहीं था। बाइबल यीशु को मछली (लूका 24:42-43) और मेम्ना (लूका 22:8-15) खाने को लिपिबद्ध करती है। यीशु ने आश्चर्यजनक रीति से भीड़ को मछली और रोटी से भोजन कराया था, जो यदि वह शाकाहारी होता तो, उसके द्वारा की जाने वाली अद्भुत घटना होती (मत्ती 14:17-21)। प्रेरित पतरस को दिए हुए दर्शन में, यीशु ने सभी तरह के भोजन के शुद्ध होने की घोषणा की, जिसमें पशु भी सम्मिलित हैं (प्रेरितों के काम 10:10-15)। नहू के समय के जल प्रलय के पश्चात्, परमेश्‍वर ने मनुष्यों को मांस खाने की अनुमति प्रदान की (उत्पत्ति 9:2-3)। परमेश्‍वर ने कभी भी इस अनुमति को निरस्त नहीं किया है।

इतना कहने के पश्चात्, एक मसीही विश्‍वासी का किसी भी तरह से शाकाहारी होना गलत नहीं है। बाइबल हमें मांस खाने का आदेश नहीं देती है। मांस खाने से दूर रहने में कुछ भी गलत नहीं है। जो बाइबल कहती है, वह यह है, कि हमें इसके प्रति हमारे निर्णयों कों दूसरों के ऊपर दबाव सहित लागू नहीं करना चाहिए या अन्य लोगों को जो कुछ वह खाते या नहीं खाते हैं, के अनुसार दोषी नहीं ठहराना चाहिए। रोमियों 14:2-3 हमें बताता है, “एक को विश्‍वास है कि सब कुछ खाना उचित है, परन्तु जो विश्‍वास में निर्बल है वह साग पात ही खाता है। खानेवाला न-खानेवाले को तुच्छ न जाने, और न-खानेवाला खानेवाले पर दोष न लगाए; क्योंकि परमेश्‍वर ने उसे ग्रहण किया है।”

एक बार फिर से, परमेश्‍वर ने मनुष्य को जल प्रलय के पश्चात् मांस खाने की अनुमति प्रदान की थी (उत्पत्ति 9:3)। पुराने नियम की व्यवस्था में, इस्राएली जाति को कुछ निश्चित भोजन खाने से मना किया गया है (लैव्यव्यवस्था 11:1-47), परन्तु कहीं पर भी कहीं भी मांस खाने के विरोध में कोई आदेश नहीं दिया गया है। यीशु ने सभी तरह के भोजनों को, जिसमें सभी तरह के मांस को शुद्ध होना घोषित किया है (मरकुस 7:19)। जैसा किसी भी बात के लिए होता है, प्रत्येक मसीही विश्‍वासी को इस बात के मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करनी चाहिए कि परमेश्‍वर उससे क्या चाहता है, कि उसे क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए। जो कुछ भी हम खाने का निर्णय लेते हैं, वह परमेश्‍वर को तब तक स्वीकार्ययोग्य है, जब तक हम उसे इसके प्रबन्ध करने के लिए धन्यवाद देते हैं (1 थिस्सलुनीकियों 5:18). “इसलिये चाहे तुम खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिये करो” (1 कुरिन्थियों 10:31)।

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