शैतानवाद क्या है?

प्रश्न शैतानवाद क्या है? उत्तर शैतानवाद की परिभाषा आसानी से नहीं हो सकती है। शैतानवाद के कई “विभाजन” हैं। मसीही विश्‍वासियों के विपरीत, शैतानवादी स्वयं उनके अपने मूलभूत सिद्धान्तों से असहमत होते हैं। मसीही विश्‍वासी बाइबल के कुछ सन्दर्भों की व्याख्या के बारे में अपने विचार या धारणा में भिन्न हो सकते हैं, परन्तु वे…

प्रश्न

शैतानवाद क्या है?

उत्तर

शैतानवाद की परिभाषा आसानी से नहीं हो सकती है। शैतानवाद के कई “विभाजन” हैं। मसीही विश्‍वासियों के विपरीत, शैतानवादी स्वयं उनके अपने मूलभूत सिद्धान्तों से असहमत होते हैं। मसीही विश्‍वासी बाइबल के कुछ सन्दर्भों की व्याख्या के बारे में अपने विचार या धारणा में भिन्न हो सकते हैं, परन्तु वे सभी एक ही मूलभूत सिद्धान्त पर विश्‍वास करते हैं कि यीशु ही परमेश्‍वर का पुत्र है, जिसने क्रूस के ऊपर अपनी मृत्यु और मृतकों में से पुनरुत्थान के द्वारा हमारे पापों के दण्ड को चुका दिया है। शैतानवादी स्वयं में ही तर्क वितर्क करते हैं कि क्या वास्तव में शैतान का अस्तित्व है और क्या वे उसकी या स्वयं किसकी आराधना कर रहे हैं। अपने सार में, वे झूठ के द्वारा बँधा हुआ एक भ्रमित समूह है। कदाचित् शैतानवादियों के ऊपर यूहन्ना 8:44 लागू होता है: “तुम अपने पिता शैतान से हो और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। वह तो आरम्भ से हत्यारा है और सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि सत्य उसमें है ही नहीं। जब वह झूठ बोलता, तो अपने स्वभाव ही से बोलता है; क्योंकि वह झूठा है वरन् झूठ का पिता है।”

इन झूठों के कारण ही शैतानवाद के भीतर कई विचारधाराएँ पाई जाती हैं। शैतानवाद की कुछ प्रथाएँ स्थाई हैं, और शैतानवादियों की एकता एक अन्तर्निहित विश्‍वास पद्धति की तुलना में प्रथाओं में अधिक पाई जाती है। शैतानवादी कुछ बातें को निश्चित रूप से करते हैं; उन्हें कुछ बातों के ऊपर विश्‍वास करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

अधिकांश शैतानवादी, शैतान के आराधक, काला जादू करने वाले, लूसीफरवादी और शैतान की कलीसिया के सदस्य स्वयं को एंटोन लीवेए के ऊपर निहित होने का दावा करते हैं, जो शैतानिक बाइबल का लेखक और शैतान की प्रथम कलीसिया का पहला संस्थापक है। लीवेए ने 1966 में शैतान की प्रथम कलीसिया को आरम्भ किया था। प्रत्येक बुरी बात के ऊपर स्व-घोषित अधिकारी होने के नाते, उसने प्रति व्यक्ति $ 2.00 की लागत से साप्ताहिक व्याख्यान देना आरम्भ कर दिया था। और इस प्रकार शैतान की कलीसिया उत्पन्न हुई थी।

शैतानवाद की सभी शाखाओं में मूलभूत समानता स्वयं की पदोन्नति करना है। सभी प्रकार के शैतानवाद का यह दावा है कि जीवन उपभोग करने के लिए अस्तित्व में है और वह स्वार्थ एक गुण है। कुछ शैतानवादी यह मानते हैं कि अस्तित्व की जानकारी केवल इसी पृथ्वी पर हो सकती है। इस प्रकार, शैतान के भक्त क्षण भर के जीवन को यापन करते हैं, और उनका विश्‍वासकथन पेटूपन और काम-वासना है।

शैतानवाद शैतान के प्रति अपनी निष्ठा के होने की प्रतिज्ञा करता है, चाहे शैतान की कलीसिया में कुछ लोग मानते हैं कि कोई भी ईश्‍वर या शैतान का अस्तित्व ही नहीं है। शैतान की कलीसिया में अधिकांश लोग यह भी मानते हैं कि उनके लिए या किसी और के लिए कोई उद्धारक नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन के पथ के चुनाव लिए पूरी तरह स्वयं उत्तरदायी है। परन्तु, तौभी वे अनुष्ठानों में, उनके जीवनों के लिए उसके सर्वोच्च हाथों को कार्यरत् होने के लिए प्रगटीकरण के लिए प्रार्थना करते हैं। इस तरह की सोच उनके दर्शन में झूठों और धोखों के प्रभाव को प्रगट करती है। चाहे शैतानवादी उसमें विश्‍वास करे या नहीं, यह शैतान के लिए कोई महत्व नहीं रखता है। अन्तिम परिणाम एक ही जैसा है — उनकी आत्माएँ अर्थात् प्राण उसके बन्धन में हैं, और, जब तक परमेश्‍वर का अनुग्रह हस्तक्षेप नहीं करता, वे शाश्‍वतकाल के लिए नरक का अनुभव करेंगे।

संक्षेप में, शैतानवाद में शैतान की आराधना सम्मिलित हो भी सकती और नहीं भी हो सकती है, परन्तु यह एक सच्चे परमेश्‍वर की आराधना हीं करने का सचेत प्रयास है। रोमियों 1 एक शैतानवादी के मन और उद्देश्यों के स्पष्ट चित्र को प्रस्तुत करता है। उन्हों “उनके निकम्मे मन पर छोड़ दिया है कि वे अनुचित्त काम करें। इसलिए वे सब प्रकार के अधर्म से भर गए हैं” (वचन 28-29)। शैतान के द्वारा इस तरह की जीवनशैली को यापन करने के लिए भ्रमित कर दिए गए लोगों को परमेश्‍वर के अनुग्रह और स्वतन्त्रता की अवधारणा को समझने में अत्यधिक कठिनाई होती है। इसकी अपेक्षा, वे स्वयं के लिए, स्वयं के द्वारा जीवन यापन करते हैं।

दूसरा पतरस 2 में हर उस व्यक्ति के लिए चेतावनी दी गई है, जो शैतानवाद या परमेश्‍वर की अपेक्षा किसी अन्य वस्तु का अनुसरण करता है: “ये लोग सूखे कुएँ, और आँधी के उड़ाए हुए बादल हैं, उनके लिये अनन्त अन्धकार ठहराया गया है। वे व्यर्थ घमण्ड की बातें कर करके लुचपन के कामों के द्वारा, उन लोगों को शारीरिक अभिलाषाओं मे फँसा लेते हैं, जो भटके हुओं में से अभी निकल ही रहे हैं। वे उन्हें स्वतन्त्र करने की प्रतिज्ञा तो करते हैं, पर आप ही सड़ाहट के दास हैं, क्योंकि जो व्यक्ति जिससे हार गया है, वह उसका दास बन जाता है” (वचन 17-19)।

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