बाइबल के अध्ययन में संदर्भ क्यों महत्वपूर्ण है?

प्रश्न बाइबल के अध्ययन में संदर्भ क्यों महत्वपूर्ण है? उत्तर बाइबल के अनुच्छेदों और कहानियों का अध्ययन उनके संदर्भ अर्थात् उनकी पृष्ठभूमि करना महत्वपूर्ण है। किसी वचन को उसके संदर्भ के बिना अध्ययन करना सभी प्रकार की गलतियों और गलत व्याख्याओं की ओर जाता है। संदर्भ को समझना चार सिद्धान्तों के ऊपर आधारित है :…

प्रश्न

बाइबल के अध्ययन में संदर्भ क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर

बाइबल के अनुच्छेदों और कहानियों का अध्ययन उनके संदर्भ अर्थात् उनकी पृष्ठभूमि करना महत्वपूर्ण है। किसी वचन को उसके संदर्भ के बिना अध्ययन करना सभी प्रकार की गलतियों और गलत व्याख्याओं की ओर जाता है। संदर्भ को समझना चार सिद्धान्तों के ऊपर आधारित है : शाब्दिक अर्थ (यह क्या कहता है), ऐतिहासिक रूपरेखा (कहानी की घटनाएँ, यह किसे सम्बोधित किया गया है, और यह कैसे अपने समय में समझा गया था), व्याकरण (तत्कालिक वाक्य और अनुच्छेद जिसमें एक शब्द या वाक्य पाया जाता है) और संश्लेषण (पवित्रशास्त्र के अन्य अंशों के साथ इसकी तुलना)। बाइबल की व्याख्या करने के लिए संदर्भ अति महत्वपूर्ण होता है। एक प्रसंग के शाब्दिक, ऐतिहासिक, और व्याकरणीय स्वभाव को ध्यान में रखने के पश्चात्, हमें पुस्तक की रूपरेखा और तत्पश्चात् अध्याय और तब एक अनुच्छेद के ऊपर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। ये सभी “संदर्भ” में सम्मिलित हैं। इसका उदाहरण, यह गुगल मानचित्रों की वैबसाईट के ऊपर संसार के एक मानचित्र को देखने की तरह है और जिसमें एक घर धीरे धीरे बड़ा होता जा रहा है।

अनुच्छेदों और वचनों को उनके संदर्भों से हट कर अध्ययन करना सदैव गलत धारणाओं की ओर ले चलता है। उदाहरण के लिए, “परमेश्‍वर प्रेम है” (1 यूहन्ना 4:7-16) वाक्यांश को उसके संदर्भ के बिना अध्ययन करने से, हम यह सोच सकते हैं कि हमारा परमेश्‍वर सब कुछ को और हर किसी के साथ हर समय भावुकता से भरे हुए, रोमांटिक प्रेम को करता है। परन्तु “प्रेम” यहाँ पर अपने शाब्दिक और व्याकरणीय संदर्भ में अगापे प्रेम के लिए उद्धृत किया गया है, जिसका सार एक दूसरे के लाभ के लिए बलिदान देने से है, न कि यह एक भावुकता भरी या रोमाटिंक भावना है। ऐतिहासिक संदर्भ भी बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यूहन्ना पहली-सदी की कलीसिया के विश्‍वासियों को सम्बोधित कर रहा और उन्हें न केवल परमेश्‍वर के प्रेम को मात्र बातों से ही नहीं करने का निर्देश दे रहा था, अपितु साथ ही उन्हें इस बात का उपदेश भी दे रहा था कि कैसे झूठे शिक्षकों से विश्‍वासियों की पहचान करनी है। सच्चा प्रेम — बलिदानात्मक, लाभकारी — जो एक सच्चे विश्‍वासी का चिन्ह होता है (वचन 7); वे जो प्रेम नहीं करते हैं, परमेश्‍वर से सम्बन्धित नहीं है (वचन 8); इससे पहले कि हमने परमेश्‍वर को प्रेम किया उसने हम से प्रेम किया है (वचन 9-10); और यही वह कारण है कि क्यों हमें एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए और इस तरह से यह प्रमाणित करना चाहिए कि हम उसके हैं (वचन 11-12)।

इसके अतिरिक्त, इस वाक्य “परमेश्‍वर प्रेम है” के ऊपर पवित्रशास्त्र के पूरी संदर्भ में रखते हुए ध्यान देना (संश्लेषण) हमें झूठ से और सदैव-साधारण-सा मिलने वाला निष्कर्ष कि परमेश्‍वर केवल प्रेम ही है या उसका प्रेम उसके सभी अन्य गुणों से कहीं अधिक बढ़कर है, की गलत धारणा से बचाएगा। हम अन्य कई अतिरिक्त प्रसंगों से जानते हैं कि परमेश्‍वर पवित्र, धर्मी, विश्‍वासयोग्य और भरोसे के योग्य, अनुग्रहकारी, दयालु और तरस खाने वाला, सर्वसामर्थी, सर्वउपस्थित और सर्वज्ञानी भी है, और इसके साथ अन्य कई बातें भी पाई जाती हैं। हम साथ ही कई अन्य अनुच्छेदों से जानते हैं कि परमेश्‍वर न केवल हमें प्रेम करता है, अपितु वह साथ ही घृणा भी करता है (भजन संहिता 11:5)।

बाइबल परमेश्‍वर का वचन है, जो शाब्दिक रूप से “परमेश्‍वर की प्रेरणा” से रचा हुआ है (2 तीमुथियुस 3:16), और हमें इसे पढ़ने, अध्ययन करने और समझने का आदेश बाइबल के अध्ययन के अच्छे तरीकों से और सदैव हमारे मार्गदर्शन के लिए पवित्र आत्मा के द्वारा प्रकाश पाते हुए करने के लिए दिया गया है (1 कुरिन्थियों 2:14)। संदर्भ के विषय में परिश्रम बनाए रखने के द्वारा हमारे अध्ययन को बहुत अधिक आगे की ओर बढ़ाया जा सकता है। ऐसे स्थान को इंगित करना कठिन नहीं है, जो प्रतीत होता है कि पवित्रशास्त्र के अन्य भागों का विरोधाभासी हैं, परन्तु हमें सावधानी से उनके संदर्भों अर्थात् पृष्ठभूमि को देखते हैं और एक सन्दर्भ के रूप में पूरी तरह से पवित्रशास्त्र का उपयोग करते हैं, हम एक अनुच्छेद के अर्थ को समझ सकते हैं और स्पष्ट आभासित होते हुए विरोधाभास को समझाया जा सकता है। “संदर्भ राजा है” का अर्थ यह है कि संदर्भ अक्सर एक वाक्यांश के अर्थ को देता है। संदर्भ को अनदेखा करना हमें स्वयं को बहुत बड़े नुकसान में डाल देगा।

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