144,000 कौन हैं? क्या 144,000 की सँख्या परमेश्‍वर के उन लोगों की है जो नए स्वर्ग में प्रवेश करेंगे?

प्रश्न 144,000 कौन हैं? क्या 144,000 की सँख्या परमेश्‍वर के उन लोगों की है जो नए स्वर्ग में प्रवेश करेंगे? उत्तर प्रकाशितवाक्य की पुस्तक ने सदैव व्याख्याकारों के सामने चुनौती को प्रदान किया है। यह पुस्तक सजीव अलंकृत भाषा और प्रतीकों से भरी हुई है जिन्हें लोगों ने पूरी पुस्तक के प्रति उनकी पूर्वधारणाओं के…

प्रश्न

144,000 कौन हैं? क्या 144,000 की सँख्या परमेश्‍वर के उन लोगों की है जो नए स्वर्ग में प्रवेश करेंगे?

उत्तर

प्रकाशितवाक्य की पुस्तक ने सदैव व्याख्याकारों के सामने चुनौती को प्रदान किया है। यह पुस्तक सजीव अलंकृत भाषा और प्रतीकों से भरी हुई है जिन्हें लोगों ने पूरी पुस्तक के प्रति उनकी पूर्वधारणाओं के ऊपर आधारित होकर भिन्न व्याख्याओं में किया है। प्रकाशितवाक्य की पुस्तक की व्याख्या करने के लिए चार दृष्टिकोण पाए जाते हैं: 1) अतीतवादी (जो प्रकाशितवाक्य की सभी या अधिकांश घटनाओं को ऐसी देखता कि यह 1ली सदी के अन्त में पहले से ही घटित हो चुकी हैं); 2) इतिहासवादी (जो प्रकाशितवाक्य की पुस्तक को प्रेरितों के समय से लेकर वर्तमान तक की कलीसिया के एक सर्वेक्षण के इतिहास के रूप में देखती है); 3) आदर्शवादी (जो प्रकाशतिवाक्य की पुस्तक भलाई और बुराई के मध्य में चलते हुए संघर्ष के चित्रण को देखती है); 4) भविष्यवादी (जो प्रकाशितवाक्य की भविष्यद्वाणी को आने वाली घटनाओं के रूप में देखती है)। उपरोक्त चारों में से, केवल भविष्यवादी दृष्टिकोण ही प्रकाशितवाक्य की व्याख्या उसी व्याकरणीय-ऐतिहासिक तरीके का उपयोग करते हुए करती है जैसे कि बाकी का पवित्रशास्त्र करता है। यह साथ ही प्रकाशितवाक्य के स्वयं भविष्यद्वाणी होने के दावे के साथ भी सही बैठती है (प्रकाशितवाक्य 1:3; 22:7, 10, 18, 19)।

इसलिए इस प्रश्‍न, “कि 144,000 कौन हैं?” का उत्तर, इस बात पर निर्भर करेगा कि कौन से व्याख्यात्मक दृष्टिकोण को आपने प्रकाशितवाक्य की पुस्तक के अध्ययन के लिए लिया है। भविष्यवादी दृष्टिकोण के अपवाद को छोड़, बाकी के अन्य सभी दृष्टिकोण 144,000 को प्रतीकात्मक रूप से कलीसिया का प्रतिनिधित्व करने वाले और पूर्णता में प्रतीक स्वरूप 144,000 की सँख्या का होना – अर्थात् कलीसिया की पूर्ण गिनती के रूप में व्याख्या करते हैं। तथापि जब आप इस सँख्या को देखते हैं: “जिन पर मुहर दी गई मैं ने उनकी गिनती सुनी: अर्थात् इस्राएल की सन्तानों के सब गोत्रों में से एक लाख चौवालीस हजार पर मुहर दी गई” (प्रकाशितवाक्य 7:4), तब इस अनुच्छेद का कोई भी अंश 144,000 को यहूदियों की शाब्दिक गिनती – “इस्राएल की सन्तानों” में से 12,000 प्रत्येक गोत्र से लिए हुए को छोड़कर किसी और बात के भावार्थ को नहीं बताता है। नया नियम इस्राएल को कलीसिया में परिवर्तित होने के लिए कोई स्पष्ट वचन प्रदान नहीं करता है।

यहूदियों को “मुहरबन्द” किया गया था जिसका अर्थ है कि उनको परमेश्‍वर के सभी ईश्‍वरीय न्यायों और मसीह विरोधी की उन सभी गतिविधियों से जिन्हें वह महाक्लेश के समय में पूरा करेगा परमेश्‍वर की विशेष सुरक्षा प्रदान की गई थी (देखें प्रकाशितवाक्य 6:17, जिसमें लोग आश्चर्य करेंगे कि कौन परमेश्‍वर के क्रोध के आगे खड़ा रहेगा)। महाक्लेश की अवधि भविष्य के उन सात-वर्षों की अवधि है जिसमें परमेश्‍वर अपने ईश्‍वरीय न्याय को उन लोगों के ऊपर लागू करेगा जो उसका इन्कार कर देंगे और वह इस्राएल की जाति के लिए उद्धार की अपनी योजना को पूरा करेगा। यह सब कुछ भविष्यद्वक्ता दानिय्येल को दिए हुए परमेश्‍वर के प्रकाशन के अनुसार है (दानिय्येल 9:24–27)। 144, 000 यहूदी एक तरह से छुटकारा पाए हुए इस्राएल के “प्रथम फल” हैं (प्रकाशितवाक्य 14:4) जिसकी भविष्यद्वाणी पूर्व में कर दी गई थी (जकर्याह 12:10; रोमियों 11:25–27), और ऐसा आभासित होता है कि उसका कार्य उत्तर-मेघारोहण के संसार में सुसमाचार प्रचार करना और महाक्लेश की अवधि के मध्य में सुसमाचार की घोषणा करना है। उनकी सेवकाई के फलस्वरूप, हजारों की सँख्या में – “हर एक जाति, और कुल और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता था” (प्रकाशितवाक्य 7:9)— मसीह में विश्‍वास करती हुई आएगी।

144,000 के सम्बन्ध में अधिकांश उलझन यहोवा विटनेसेस के झूठे धर्मसिद्धान्तों के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुए हैं। यहोवा विटनेसेस दावा करते हैं कि 144,000 उन लोगों की एक सीमित सँख्या जो मसीह के साथ स्वर्ग में राज्य करेंगे और परमेश्‍वर के साथ अनन्तकाल को व्यतीत करेंगे। 144,000 को यहोवा विटनेसेस सम्प्रदाय के विश्‍वासी स्वर्गीय आशा के रूप में पुकारते हैं। वे जो 144,000 की सँख्या से सम्बन्धित नहीं है पार्थिव आशा – पृथ्वी पर एक ऐसे स्वर्गलोक का आनन्द लेंगे जिस पर मसीह और 144,000 लोगों का राज्य होगा। स्पष्टतया, हम देख सकते हैं कि यहोवा विटनेसेस सम्प्रदाय मृत्यु उपरान्त एक जातिवादी समाज की रचना की शिक्षा देते है जिसमें (144,000) राज्य करने वाली एक जाति है और एक जाति ऐसी है जिसके ऊपर राज्य किया जाना है। बाइबल इस तरह के “द्विभागी जातिवादी” के धर्मसिद्धान्त की शिक्षा नहीं देती है। यह सत्य है कि मसीह के साथ सहस्त्र वर्ष में ऐसे लोगों होंगे जो राज्य करेंगे। परन्तु यह लोग कलीसिया (यीशु मसीह के विश्‍वासियों, 1 कुरिन्थियों 6:2), और पुराने नियम के सन्तों (मसीह के प्रथम आगमन से पहले मरे हुए विश्‍वासी, दानिय्येल 7:27), और महाक्लेश अवधि के विश्‍वासी (वे जो मसीह को महाक्लेश के मध्य में ग्रहण करेंगे, प्रकाशितवाक्य 20:4) के समूह के होंगे। तथापि बाइबल कहीं भी इन समूहों के लोगों की सँख्या को निर्धारित नहीं करती है। इसके अतिरिक्त, सहस्त्रवर्ष अनन्तकालीन अवस्था से पूर्ण रीति से भिन्न है, जो सहस्त्रवर्ष के पूर्ण होने के अवधि के पश्चात् आरम्भ होगा। उस समय, परमेश्‍वर हमारे साथ नए यरूशलेम में वास करेगा। वह हमारा परमेश्‍वर होगा और हम उसके लोग होंगे (प्रकाशितवाक्य 21:3)। इस मीरास की प्रतिज्ञा मसीह में हमें दी गई और यह पवित्र आत्मा के द्वारा मुहरबन्द किया गया है (इफिसियों 1:13–14) जो अब हमारा हो जाएगा, और हम मसीह के साथ उसके संगी वारिस होंगे (रोमियों 8:17)।

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