2 थिस्सलुनीकियों की पुस्तक

2 थिस्सलुनीकियों की पुस्तक लेखक : 2 थिस्सलुनीकियों 1:1 सूचित करता है कि 2 थिस्सलुनीकियों की पुस्तक प्रेरित पौलुस के द्वारा, सम्भवत: सीलास और तीमुथियुस के साथ मिलकर लिखी गई थी। लेखन तिथि : 2 थिस्सलुनीकियों की पुस्तक 51-52 ईस्वी सन् के आसपास लिखी गई थी। लेखन का उद्देश्य : थिस्सलुनीके की कलीसिया में प्रभु…

2 थिस्सलुनीकियों की पुस्तक

लेखक : 2 थिस्सलुनीकियों 1:1 सूचित करता है कि 2 थिस्सलुनीकियों की पुस्तक प्रेरित पौलुस के द्वारा, सम्भवत: सीलास और तीमुथियुस के साथ मिलकर लिखी गई थी।

लेखन तिथि : 2 थिस्सलुनीकियों की पुस्तक 51-52 ईस्वी सन् के आसपास लिखी गई थी।

लेखन का उद्देश्य : थिस्सलुनीके की कलीसिया में प्रभु के दिन के बारे में कुछ गलत धारणाएँ अभी भी बनी हुई थीं। उन्होंने सोचा कि यह आ चुका है इसलिए उन्होंने अपने कार्यों को करना ही बन्द दिया। उन्हें बुरी तरह से सताया जा रहा था। पौलुस ने उनकी इन गलत धारणाओं को हटाने और उन्हें सांत्वना देने के लिए इस पत्र को लिखा।

कुँजी वचन : 2 थिस्सलुनीकियों 1:6-7, “क्योंकि परमेश्‍वर के निकट यह न्याय है कि जो तुम्हें क्लेश देते हैं, उन्हें बदले में क्लेश दे। और तुम्हें, जो क्लेश पाते हो, हमारे साथ चैन दे; उस समय जब कि प्रभु यीशु अपने सामर्थी दूतों के साथ, धधकती हुई आग में स्वर्ग से प्रगट होगा।”

2 थिस्सलुनीकियों 2:13, “हे भाइयो, और प्रभु के प्रिय लोगो, चाहिये कि हम तुम्हारे विषय में सदा परमेश्‍वर का धन्यवाद करते रहें, क्योंकि परमेश्‍वर ने आदि से तुम्हें चुन लिया कि आत्मा के द्वारा पवित्र बनकर, और सत्य की प्रतीति करके उद्धार पाओ।”

2 थिस्सलुनीकियों 3:3, “परन्तु प्रभु सच्चा है; वह तुम्हें दृढ़ता से स्थिर करेगा और उस दुष्ट से सुरक्षित रखेगा।”

2 थिस्सलुनीकियों 3:10, “क्योंकि जब हम तुम्हारे यहाँ थे, तब भी यह आज्ञा तुम्हें देते थे : कि यदि कोई काम करना न चाहे तो खाने भी न पाए।”

संक्षिप्त सार : पौलुस थिस्सलुनीके की कलीसिया को अभिवादन देता है और उन्हें उत्साहित और उपदेश देता है। वह उन्हें आदेश देता है कि जो कुछ जो कुछ वे सुनते हैं उसे प्रभु के लिए करें, और वह उनके लिए प्रार्थना करता है (2 थिस्सलुनीकियों 1:11-12)। अध्याय 2 में, पौलुस वर्णन करता है कि प्रभु के दिन क्या कुछ घटित होगा (2 थिस्सलुनीकियों 2:1-12)। पौलुस तब उन्हें दृढ़ता से खड़े रहने के लिए उत्साहित करता है और निर्देश देता है कि वे ऐसे बकवादी मनुष्यों से दूर रहें जो सुसमाचार के अनुसार जीवन व्यतीत नहीं करते हैं (2 थिस्सलुनीकियों 3:6)।

सम्पर्क : पौलुस पुराने नियम के कई संदर्भों को अन्त के समय के अपनी चर्चा के लिए उपयोग करता है, इस तरह से वह पुराने नियम के भविष्यद्वक्ताओं की पुष्टि और मेल मिलाप कर रहा है। अन्त के समय की उसकी बहुत सी शिक्षाएँ भविष्यद्वक्ता दानिय्येल और उसके दर्शनों के ऊपर आधारित हैं। 2 थिस्सलुनीकियों 2:3-9 में, वह दानिय्येल की “पाप के पुरूष” के सम्बन्ध में की हुई भविष्यद्वाणी को उद्धृत करता है (दानिय्येल 7–8)।

व्यवहारिक शिक्षा : 2 थिस्सलुनीकियों की पुस्तक महत्वपूर्ण सूचनाओं से भरी हुई है जो अन्त के समय का वर्णन करती हैं। यह साथ ही हमें व्यर्थ समय न गवाँने और जो कुछ हमारे पास उसके लिए कार्य करने के लिए उपदेश देती है। 2 थिस्सलुनीकियों में साथ ही कुछ प्रार्थनाएँ भी दी गई हैं जो हमारे लिए प्रार्थना का नमूना हो सकती हैं कि हमें अन्य विश्‍वासियों के लिए आज कैसे प्रार्थना करनी चाहिए।



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